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विकास के नाम पर तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल मत बनाइए !

रामनाथी । प्राचीन काल में अंकोर वाट, हम्पी, आदि भव्य मंदिरों का निर्माण करनेवाले राजा-महाराजाओं ने उनका उत्तम व्यवस्थापन किया था । इन मंदिरों के माध्यम से गोशालाओं, अन्नछत्रों, धर्मशालाओं, शिक्षाकेंद्रों आदि चलाकर समाज की अमूल्य सहायता की जाती थी । उसके कारण ही हिन्दू समाज मंदिरों से जुडा रहता था; परंतु आज के समय में मंदिरों का इतना व्यापारीकरण हुआ है कि ये मंदिर व्यापारीक संकुल (शॉपिंग मॉल) बन चुके हैं, साथ ही विकास के नाम पर तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल बनाया जा रहा है । इसे रोकना आवश्यक है । इसलिए मंदिरों के न्यासियों को और पुरोहितों को मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन करना चाहिए । इसे करने के ळिए ‘मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन’ (दी टेम्पल मैनेजमेंट) यह पाठ्यक्रम चलाना चाहिए; इस विषय पर ‘हिन्दूराष्ट्र संसद’ में विचारमंथन किया गया । १३ जून को दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के दूसरे दिन ‘मंदिरों का सुव्यवस्थापन’ इस विषय पर इस हिन्दू राष्ट्र संसद में विभिन्न मंदिरों के न्यासियों, श्रद्धालुओं, अधिवक्ताओं और हिन्दुत्वनिष्ठों ने अपने अभ्यासपूर्ण विचार व्यक्त किए । अन्य मान्यवरों ने भी विचारमंथन किया । इस संसद में सभापति के रूप में भुवनेश्वर (ओडिशा) के ‘भारत रक्षा मंच’के राष्ट्रीय महामंत्री अनिल धीर, उपसभापति ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी और सचिव के रूप में ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के मध्यप्रदेश तथा राजस्थान राज्य समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने कामकाज देखा ।

हिन्दू समाज शरीर से हिन्दू है; परंतु उसकी भाषा अंग्रेजों की बन चुकी है । मंदिर हमारे श्रद्धा और प्रेरणा के केंद्र हैं; परंतु इन्हीं श्रद्धाओं पर आघात कर हमारे ५ लाख से अधिक मंदिरों का भंजन किया गया । अब तो मंदिरों की रक्षा करने के लिए एक व्यवस्था का निर्माण करने की आवश्यकता है । यह व्यवस्था हिन्दू जनजागृति समिति कर रही है । हमारे देश में विभिन्न स्थानों पर मंदिर हैं । ये मंदिर सद्विचारों की प्रेरणा देते हैं । जहां मंदिर होते हैं, वहां के परिसर में चैतन्य निर्माण होता है । मंदिरों के देवताओं की प्रतिदिन उपासना करते-करते श्रद्धालुओं में विद्यमान देवत्व भी जागृत होता है । उसके लिए मंदिरों में आनेवाले हिन्दू श्रद्धालुओं का एकत्रीकरण कर उन्हें धर्मशास्त्र सिखाया जाना चाहिए । विशेषरूप से छोटे बच्चे और युवकों को मंदिरों के साथ जोडने की आवश्यकता है । लोगों में नैतिकता बढने के लिए मंदिरों की आवश्यकता है ।

केवळ रामनाम का जाप करना उपयोगी नहीं है, अपितु रामकार्य में योगदान देने से भक्ति सफल होती है । योगदान न देने से भक्ति सफल नहीं होती । संतों द्वारा बताए अनुसार वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने ही वाली है; परंतु हम सभी को उस कार्य में योगदान देने की आवश्यकता है ।’’

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