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धार्मिक स्थलों के विकास के नाम पर प्राचीन मठ-मंदिरों का विध्वंस : अनिल धीर

फोंडा (गोवा) । धार्मिक स्थलों के विकास के नाम पर प्राचीन मठ-मंदिरों को तोडा जा रहा है । स्वर्णमंदिर की भांति जगन्नाथ पुरी मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बनाने के प्रकल्प में ओडिशा सरकार ने अनेक प्राचीन मठ-मंदिरों को धराशायी किया । धार्मिक स्थलों का विकास नहीं, केवल परिसर का सौंदर्यीकरण हो रहा है । किसी तीर्थक्षेत्र को पर्यटन का स्थान बनाने का यह कार्य है । यदि इसे रोकना है, तो धार्मिक स्थलों से संबंधित कोई भी प्रकल्प (कार्य) आरंभ करने से पहले स्थानीय समिति गठित कर वहां के लोगों का समर्थन प्राप्त किया जाए, यह मांग ओडिशा में भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय सचिव श्री. अनिल धीर ने की । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ६ अगस्त को ‘ऑनलाइन’ नवम ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के अंतर्गत ‘मंदिररक्षा’ विषय पर उद्बोधन सत्र का आयोजन किया गया था । उस समय, ‘जगन्नाथ पुरी के मठ-मंदिरों की भूमि हडपने का सरकारी षड्यंत्र’ विषय पर वे बोल रहे थे ।

अनिल धीर के अन्य महत्त्वपूर्ण विचार
ओडिशा सरकार ने जगन्नाथ पुरी के मंदिर की परिक्रमा प्रकल्प के अंतर्गत प्राचीन लांगोडी, मंगू, बडा अखाडा जैसे बडे मठों को हिन्दुओं के विरोध की अनदेखी करते हुए ध्वस्त किया । इसके अतिरिक्त, सैकडों छोटे मठ भी तोडे । मठों की संपत्ति का कानूनी प्रमाणपत्र (डॉक्युमेंटेशन) नहीं बनाया गया । सरकार कहती है कि वहां समाजविरोधी गतिविधियां होती हैं । इस कार्यवाही में एम.आर. मठ का प्राचीन और बडा रघुनंदन ग्रंथालय भी ध्वस्त किया गया । इस ग्रंथालय में ३५ सहस्र ग्रंथ थे । इस कार्यवाही के पश्‍चात अब केवल ५ सहस्र ग्रंथ बचे हैं । शेष ग्रंथ कहां और किस स्थिति में हैं, यह कोई नहीं जानता । इस प्रकार, यह अमूल्य धरोहर लुप्त हो गई । विशेष बात यह है कि पुरी का जो मठ तोडा गया, उसके पास भगवान जगन्नाथ के धार्मिक उपचार पूजा का दायित्व था । एक मठ भगवान जगन्नाथ के लिए फूल देता था, तो दूसरा मठ औषधि अथवा अलंकार इत्यादि । भुवनेश्‍वर तथा वाराणसी में भी अनेक प्राचीन मंदिर अतिक्रमण के नाम पर तोडे गए । राजनीतिक कारणों से की जानेवाली ऐसी कार्यवाहियों से हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, वास्तुकला समाप्त हो रही है । केंद्र सरकार इस विषय में हस्तक्षेप करे, यह हमने मांग की थी ।

कोई भवन धोखादायक (अनुपयुक्त) होने पर नई तकनीक से उसका मूल स्वरूप बनाए रखकर पुनर्निमाण किया जा सकता है । परंतु, इस नियम का पालन न कर, वह सीधे गिरा दिया जाता है, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है ।

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