‘‘आज के समय में हिन्दू धर्म को न माननेवाले अथवा देवता के प्रति श्रद्दा न रखनेवाले आधुनिकतावादी ही व्यक्तिस्वतंत्रता के नाम पर मंदिर की वस्त्रसंहिता का विरोध करते हैं । मंदिरों में देवता के दर्शन के ळिए तंग वस्त्रों में अथवा परंपराहीन वेशभूषा में जाना, इसे हम ‘व्यक्तिस्वातंत्रता’ नहीं कहेंगे । प्रत्येक व्यक्ति को ‘अपने घर में और सार्वजनिक स्थानों पर कौनसे कपडे पहनने चाहिएं’, इसकी व्यक्तिस्वतंत्रता है; परंतु मंदिर धार्मिक स्थल होने से वहां धार्मिकता के नअुरूप ही आचरण करना पडेगा । यहां व्यक्तिस्वतंत्रता को नहीं, अपितु धर्माचरण का महत्त्व है ।’’, ऐसा मार्गदर्शन सनातन के संत सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने किया । ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में ‘मंदिर व्यवस्थापन’ इस विषय पर किए गए विचारमंथन में ‘मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए वस्त्रसंहिता लागू की जाए !’ इस विषय पर वे मार्गदर्शन कर रहे थे ।
सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने आगे कहा कि,
१. तमिलनाडू उच्च न्यायालय ने भी ‘वहां के मंदिरों में प्रवेश करने के लिए सात्त्विक वेशभूषा होनी चाहिए’, इसे स्वीकार कर १ जनवरी २०१६ से वस्त्रसंहिता लागू की है । उसके अनुसार श्रद्धालुओं को केवल पारंपरिक वस्त्र धारण करना अनिवार्य बना दिया गया है ।
२. १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का श्री महाकालेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र का श्री घृष्णेश्वर मंदिर, वाराणसी का श्री काशी-विश्वेश्वर मंदिर, आंध्रप्रदेश का श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, केरल का विख्यात श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, कन्याकुमारी का श्री माता मंदिर ऐसे कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए सात्त्विक वस्त्रसंहिता लागू हुई है ।
३. हम यह आवाहन करते हैं कि भारत के सभी मंदिर इस प्रकार से वस्त्रसंहिता लागू कर मंदिरों में धर्माचरण को प्रधानता दें ।
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