राष्ट्रीय संगठन समिति के सदस्यों की सूचि….
भारत रक्षा मंच एक राष्ट्र व्यापी संगठन है इसलिए संगठन ठीक प्रकार से चले एक संगठन समिति का निर्माण किया गया है इस समिति में ऐसे लोगों को रखा गया है जो संगठन की चिंता कर सकें। इस समिति में निम्नलिखित सदस्य है:-
1.श्री सत्यनारायण जटिया जी
2.श्री सूर्यकांत केलकर जी
3.कमाण्डर डो. भूषण दीवान जी,
4.श्री प्रशांत कोतवाल जी
5.डॉ अशोक आचार्य जी
6. श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा जी
7. श्री कमलेश लोखंडे जी
8. श्री विभाकर मिश्रा जी
9. श्री हरीहर रघुवंशी जी
10. श्रीमती बिना गोगरी जी
11. श्री आषुतोष कुमार जी
12. श्री सौरव मिश्रा जी
13.श्री सुजीत पाठक जी
14.श्री शशांक चोपड़ा जी
15. श्री ईलेवान ठाकर जी
16. श्री भगवान झा जी
17. श्री उमेश पोचप्पन जी
18. श्री विद्यासागर शर्मा जी
19. श्री रामानंद सिंग जी
20. श्री शीतल राजे जी
21. श्री रामदास गोयल जी
22. श्री भूषण टिळक जी
23.श्री हरेन्द्र सिंह जी
24.श्री कैलाश वर्मा जी,
25.श्री सुनिल गर्ग जी
26. श्री पांडुरंग नायक जी
27. श्री अरविंद जैन जी
28. श्रीमती संतोष अग्रवाल जी
भारत रक्षा मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 16 और 17 मार्च 2024 को मुंबई मे
मंदिरों में व्यक्तिस्वतंत्रता को नहीं, अपितु धर्माचरण का ही महत्त्व होने से वस्त्रसंहिता लागू की जाए : सद्गुरु नंदकुमार
‘‘आज के समय में हिन्दू धर्म को न माननेवाले अथवा देवता के प्रति श्रद्दा न रखनेवाले आधुनिकतावादी ही व्यक्तिस्वतंत्रता के नाम पर मंदिर की वस्त्रसंहिता का विरोध करते हैं । मंदिरों में देवता के दर्शन के ळिए तंग वस्त्रों में अथवा परंपराहीन वेशभूषा में जाना, इसे हम ‘व्यक्तिस्वातंत्रता’ नहीं कहेंगे । प्रत्येक व्यक्ति को ‘अपने घर में और सार्वजनिक स्थानों पर कौनसे कपडे पहनने चाहिएं’, इसकी व्यक्तिस्वतंत्रता है; परंतु मंदिर धार्मिक स्थल होने से वहां धार्मिकता के नअुरूप ही आचरण करना पडेगा । यहां व्यक्तिस्वतंत्रता को नहीं, अपितु धर्माचरण का महत्त्व है ।’’, ऐसा मार्गदर्शन सनातन के संत सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने किया । ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में ‘मंदिर व्यवस्थापन’ इस विषय पर किए गए विचारमंथन में ‘मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए वस्त्रसंहिता लागू की जाए !’ इस विषय पर वे मार्गदर्शन कर रहे थे ।
सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने आगे कहा कि,
१. तमिलनाडू उच्च न्यायालय ने भी ‘वहां के मंदिरों में प्रवेश करने के लिए सात्त्विक वेशभूषा होनी चाहिए’, इसे स्वीकार कर १ जनवरी २०१६ से वस्त्रसंहिता लागू की है । उसके अनुसार श्रद्धालुओं को केवल पारंपरिक वस्त्र धारण करना अनिवार्य बना दिया गया है ।
२. १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का श्री महाकालेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र का श्री घृष्णेश्वर मंदिर, वाराणसी का श्री काशी-विश्वेश्वर मंदिर, आंध्रप्रदेश का श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, केरल का विख्यात श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, कन्याकुमारी का श्री माता मंदिर ऐसे कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए सात्त्विक वस्त्रसंहिता लागू हुई है ।
३. हम यह आवाहन करते हैं कि भारत के सभी मंदिर इस प्रकार से वस्त्रसंहिता लागू कर मंदिरों में धर्माचरण को प्रधानता दें ।
विकास के नाम पर तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल मत बनाइए !
रामनाथी । प्राचीन काल में अंकोर वाट, हम्पी, आदि भव्य मंदिरों का निर्माण करनेवाले राजा-महाराजाओं ने उनका उत्तम व्यवस्थापन किया था । इन मंदिरों के माध्यम से गोशालाओं, अन्नछत्रों, धर्मशालाओं, शिक्षाकेंद्रों आदि चलाकर समाज की अमूल्य सहायता की जाती थी । उसके कारण ही हिन्दू समाज मंदिरों से जुडा रहता था; परंतु आज के समय में मंदिरों का इतना व्यापारीकरण हुआ है कि ये मंदिर व्यापारीक संकुल (शॉपिंग मॉल) बन चुके हैं, साथ ही विकास के नाम पर तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल बनाया जा रहा है । इसे रोकना आवश्यक है । इसलिए मंदिरों के न्यासियों को और पुरोहितों को मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन करना चाहिए । इसे करने के ळिए ‘मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन’ (दी टेम्पल मैनेजमेंट) यह पाठ्यक्रम चलाना चाहिए; इस विषय पर ‘हिन्दूराष्ट्र संसद’ में विचारमंथन किया गया । १३ जून को दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के दूसरे दिन ‘मंदिरों का सुव्यवस्थापन’ इस विषय पर इस हिन्दू राष्ट्र संसद में विभिन्न मंदिरों के न्यासियों, श्रद्धालुओं, अधिवक्ताओं और हिन्दुत्वनिष्ठों ने अपने अभ्यासपूर्ण विचार व्यक्त किए । अन्य मान्यवरों ने भी विचारमंथन किया । इस संसद में सभापति के रूप में भुवनेश्वर (ओडिशा) के ‘भारत रक्षा मंच’के राष्ट्रीय महामंत्री अनिल धीर, उपसभापति ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी और सचिव के रूप में ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के मध्यप्रदेश तथा राजस्थान राज्य समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने कामकाज देखा ।
हिन्दू समाज शरीर से हिन्दू है; परंतु उसकी भाषा अंग्रेजों की बन चुकी है । मंदिर हमारे श्रद्धा और प्रेरणा के केंद्र हैं; परंतु इन्हीं श्रद्धाओं पर आघात कर हमारे ५ लाख से अधिक मंदिरों का भंजन किया गया । अब तो मंदिरों की रक्षा करने के लिए एक व्यवस्था का निर्माण करने की आवश्यकता है । यह व्यवस्था हिन्दू जनजागृति समिति कर रही है । हमारे देश में विभिन्न स्थानों पर मंदिर हैं । ये मंदिर सद्विचारों की प्रेरणा देते हैं । जहां मंदिर होते हैं, वहां के परिसर में चैतन्य निर्माण होता है । मंदिरों के देवताओं की प्रतिदिन उपासना करते-करते श्रद्धालुओं में विद्यमान देवत्व भी जागृत होता है । उसके लिए मंदिरों में आनेवाले हिन्दू श्रद्धालुओं का एकत्रीकरण कर उन्हें धर्मशास्त्र सिखाया जाना चाहिए । विशेषरूप से छोटे बच्चे और युवकों को मंदिरों के साथ जोडने की आवश्यकता है । लोगों में नैतिकता बढने के लिए मंदिरों की आवश्यकता है ।
केवळ रामनाम का जाप करना उपयोगी नहीं है, अपितु रामकार्य में योगदान देने से भक्ति सफल होती है । योगदान न देने से भक्ति सफल नहीं होती । संतों द्वारा बताए अनुसार वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने ही वाली है; परंतु हम सभी को उस कार्य में योगदान देने की आवश्यकता है ।’’
धार्मिक स्थलों के विकास के नाम पर प्राचीन मठ-मंदिरों का विध्वंस : अनिल धीर
फोंडा (गोवा) । धार्मिक स्थलों के विकास के नाम पर प्राचीन मठ-मंदिरों को तोडा जा रहा है । स्वर्णमंदिर की भांति जगन्नाथ पुरी मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बनाने के प्रकल्प में ओडिशा सरकार ने अनेक प्राचीन मठ-मंदिरों को धराशायी किया । धार्मिक स्थलों का विकास नहीं, केवल परिसर का सौंदर्यीकरण हो रहा है । किसी तीर्थक्षेत्र को पर्यटन का स्थान बनाने का यह कार्य है । यदि इसे रोकना है, तो धार्मिक स्थलों से संबंधित कोई भी प्रकल्प (कार्य) आरंभ करने से पहले स्थानीय समिति गठित कर वहां के लोगों का समर्थन प्राप्त किया जाए, यह मांग ओडिशा में भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय सचिव श्री. अनिल धीर ने की । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ६ अगस्त को ‘ऑनलाइन’ नवम ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के अंतर्गत ‘मंदिररक्षा’ विषय पर उद्बोधन सत्र का आयोजन किया गया था । उस समय, ‘जगन्नाथ पुरी के मठ-मंदिरों की भूमि हडपने का सरकारी षड्यंत्र’ विषय पर वे बोल रहे थे ।
अनिल धीर के अन्य महत्त्वपूर्ण विचार
ओडिशा सरकार ने जगन्नाथ पुरी के मंदिर की परिक्रमा प्रकल्प के अंतर्गत प्राचीन लांगोडी, मंगू, बडा अखाडा जैसे बडे मठों को हिन्दुओं के विरोध की अनदेखी करते हुए ध्वस्त किया । इसके अतिरिक्त, सैकडों छोटे मठ भी तोडे । मठों की संपत्ति का कानूनी प्रमाणपत्र (डॉक्युमेंटेशन) नहीं बनाया गया । सरकार कहती है कि वहां समाजविरोधी गतिविधियां होती हैं । इस कार्यवाही में एम.आर. मठ का प्राचीन और बडा रघुनंदन ग्रंथालय भी ध्वस्त किया गया । इस ग्रंथालय में ३५ सहस्र ग्रंथ थे । इस कार्यवाही के पश्चात अब केवल ५ सहस्र ग्रंथ बचे हैं । शेष ग्रंथ कहां और किस स्थिति में हैं, यह कोई नहीं जानता । इस प्रकार, यह अमूल्य धरोहर लुप्त हो गई । विशेष बात यह है कि पुरी का जो मठ तोडा गया, उसके पास भगवान जगन्नाथ के धार्मिक उपचार पूजा का दायित्व था । एक मठ भगवान जगन्नाथ के लिए फूल देता था, तो दूसरा मठ औषधि अथवा अलंकार इत्यादि । भुवनेश्वर तथा वाराणसी में भी अनेक प्राचीन मंदिर अतिक्रमण के नाम पर तोडे गए । राजनीतिक कारणों से की जानेवाली ऐसी कार्यवाहियों से हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, वास्तुकला समाप्त हो रही है । केंद्र सरकार इस विषय में हस्तक्षेप करे, यह हमने मांग की थी ।
कोई भवन धोखादायक (अनुपयुक्त) होने पर नई तकनीक से उसका मूल स्वरूप बनाए रखकर पुनर्निमाण किया जा सकता है । परंतु, इस नियम का पालन न कर, वह सीधे गिरा दिया जाता है, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है ।